top of page

राजनारायण दुबे और बॉम्बे टॉकीज़ की कहानी - अध्याय ५


ree
Bombay Talkies


द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ की स्थापना में यदि हिमान्शु राय की परिकल्पना थी तो इस कम्पनी के प्रमुख स्तम्भ पुरुष राजनारायण दूबे का अथक परिश्रम, लगन तथा समर्पण भी था, जिन्होंने इस ऐतिहासिक कम्पनी निर्माण में धन का अम्बार लगा दिया। राजनारायण दूबे को फिल्मों के प्रति लगाव कभी नहीं था, मगर हिमान्शु राय के काम की ख़ातिर त्याग, समर्पण और जुनून की भावना को देखते हुए उन्होंने सिनेमा इतिहास के प्रथम अत्याधुनिक स्टूडियो ‘द बॉम्बे टॉकिज़ स्टूडियोज़’ एवं ‘बॉम्बे टाकीज़ घराना‘ को स्थापित व निर्माण करने का निर्णय लिया।


राजनारायण दूबे कंस्ट्रक्शन फाइनेन्स और शेयर बाज़ार के व्यवसाय से जुड़े थे, इसलिए उन्होंने इस कम्पनी के विस्तृत और व्यवस्थित तरीके से निर्माण करने की योजना तैयार की। इसके लिए उन्होंने धन की व्यवस्था के साथ-साथ कम्पनी के कर्मचारियों की सहायता और उनकी सुख- सुविधाओं को भी उपलब्ध कराने की योजनाएं तैयार की।


राजनारायण दूबे ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कम्पनी के सभी नियमों को अमल में लाने के लिए पुरज़ोर मशक्क़त की थी। उन्होंने लिमिटेड कम्पनी के रूप में ‘द बॉम्बे टॉकीज़ लिमिटेड‘ भी बनाई, इसके लिए एक बोर्ड बनाया, जिसमें एफ. ई. दिनशा, सर चिमनलाल, सर चुन्नीलाल मेहता, सर रिचर्ड टेम्पल, सर फिरोज़ सेठना, सर कावसजी जहांगीर को बोर्ड का निदेशक नियुक्त किया। इससे पहले उन्होंने द बॉम्बे टॉकीज़ लिमिटेड’ के टायटल को कम्पनी के रूप में रजिस्टर्ड कराया और इस नाम को शेयर बाजार की सूची में सम्मानित कम्पनी के रूप में दर्ज करवाया। इस तरह ‘द बॉम्बे टॉकीज़ लिमिटेड’ को भारतीय सिनेमा इतिहास की पहली फिल्म कार्पोरेट कम्पनी होने का गौरव भी हासिल हुआ।


यह कम्पनी आम जन साधारण के सामने एक उच्च कोटि की अच्छे मापदण्डों वाली कम्पनी के रूप में आयी। ‘द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ का नाम शेयर बाज़ार की सूची में आते ही लगभग सभी प्रमुख व्यवसायियों ने इस कम्पनी के शेयर्स खरीदने में रुचि ली। जहांगीर रतनजी दादा भाई टाटा ने इस कम्पनी में सबसे पहले १० हजार रुपये लगाये, पर राजनारायण दूबे ने सबसे अधिक ७२ प्रतिशत शेयर अपने पास ही रखे।


इस कम्पनी में पैसा लगाने के लिये दिग्गज फिल्म निर्माता और फाइनेन्सर सरदार चन्दूलाल शाह भी आगे आये, मगर राजनारायण दूबे के परम मित्र होने के बाद भी राजनारायण दूबे ने चन्दूलाल शाह से पैसा लेने से साफ मना कर दिया। बाद में चन्दूलाल शाह ने ’द बॉम्बे टॉकीज़ लिमिटेड’ के कुछ शेयर गुपचुप तरीके से ख़रीद लिये थे। दरअसल राजनारायण दूबे को घोड़ों की रेस खेलने वाले लोग पसन्द नहीं थे, उन्हीं घोड़ों के रेस खेलने वालों में मोतीलाल, महमूद और चन्दूलाल थे, इसके बावज़ूद इन सभी के आपसी सम्बन्ध बहुत अच्छे थे।


बॉम्बे टॉकीज़’ जैसे अत्याधुनिक स्टूडियो के निर्माण का सपना भले ही हिमान्शु राय ने देखा था, मगर कम्पनी के हर कार्य, हर कहानी और हर परिकल्पना में राजनारायण दूबे का योगदान सबसे अधिक था। उस समय सिनेमा का प्रारम्भिक दौर था और लोग इसे अच्छी नज़रों से नहीं देखा करते थे। ऐसे समय में किसी भी सिनेमा कम्पनी को खड़ा करना और धन जुटाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन माना जाता था, मगर राजनारायण दूबे ने अपने अकेले दम पर इस असम्भव को सम्भव कर दिखाया। यह सब कुछ सम्भव हो सका राजनारायण दूबे की व्यावसायिक साख और प्रतिष्ठा के कारण।

ree
Chandulal Shah

राजनारायण दूबे के व्यावसायिक मित्र और भारत की मशहूर कम्पनी रणजीत मूवीटोन के मालिक सरदार चन्दूलाल शाह भी थे। जिन्होंने कई हिन्दी और गुजराती फिल्मों का निर्माण किया था, भारतीय सिनेमा जगत उनके भी योगदान का ऋणी रहेगा। इसके साथ ही यह नाम बॉम्बे स्टॉक एक्सचेन्ज में एक ‘टायकून’ के रूप में जाना जाता था। चन्दूलाल शाह को शेयर बाज़ार के अलावा घोड़ों के रेस का भी शौक़ था। वह रेस के इतने माहिर थे कि जिस धोड़े पर वह पैसा लगाते थे, वह घोड़ा कभी हारता नहीं था। चन्दूलाल शाह को व्यवसाय और घोड़ों के रेस के अलावा कहानियाँ लिखने का भी बेहद शौक़ था। शेयर बाज़ार के अपने दफ़्तर में बैठे-बैठे वह फिल्मों की कहानियाँ भी लिखा करते थे। आम आदमी की नज़रों में यह तीनों व्यवसाय सट्टा कहे जाते थे।


इस तरह का व्यवसाय करनेवालों को उस समय ही नहीं, आज भी सामाजिक दृष्टि से अच्छा नहीं माना जाता है। वह लोगों की बातों को नज़र अंदाज़ कर अपने लाखों के व्यवसाय को बड़े आराम से बैठ-बैठे चलाया करते थे। पर वक्त ने उनको धोखा दे दिया। पचासों फिल्मों को फाइनेन्स करने वाले चन्दूलाल शाह का अन्त बेहद मुफ़लिसी के दौर में दुःखद तरीके से हुआ। कभी लाख़ों के मालिक रहे, अपने गैराज में कई विदेशी गाड़ियाँ रखने वाले और एक ज़माने का बड़ा नाम जीवन के अन्त में पाई-पाई के लिये मोहताज हो गया। उनका ऑफिस, बंगला और सारी विदेशी गाड़ियाँ बिक गई और उनकी मौत मुम्बई के बेस्ट बस में हुई, इस बात का दुःख राजनारायण दूबे को जीवन के अन्त तक रहा। एक लेखक के तौर पर मुझे लगता है कि काश! चन्दूलाल शाह ने राजनारायण दूबे की बात मानकर जुए, सट्टे और घोड़ों की रेस पर दाँव लगाना छोड़ दिया होता तो एक महान फिल्मकार चन्दूलाल शाह का अन्त दुःखदाई नहीं, सुखदाई होता।

ree
Karma Film (1933) - Bombay Talkies Films

द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ का निर्माण शुरू हो गया। जिस समय स्टूडियो का निर्माण शुरू हुआ, उसी समय हिमान्शु राय ने ‘द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ की पहली फिल्म ‘कर्मा’ का निर्माण शुरू कर दिया। ‘कर्मा’ ‘द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ की पहली फिल्म होने के साथ ही भारत की पहली ऐसी फिल्म थी जिसकी शूटिंग विदेश (लन्दन) में हुई थी और इसका निर्माण दो भाषाओं में यानि अंग्रेज़ी एवं हिन्दी में हुआ। ‘द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ जब पूरी तरह बनकर तैयार हुआ तो वह एशिया के पहले आधुनिक सुख-सुविधाओं वाले स्टूडियो के रूप में सामने आया, जिसमें फिल्म निर्माण को लेकर सभी सुविधाएँ मौजूद थीं। अन्तरराष्ट्रीय स्तर का लैब, साउण्ड प्रूफ स्टेज, एडिटिंग रूम्स, प्रिव्यू थियेटर्स, कलाकारों के लिए आरामदायक कमरे, मेकअप रूम्स जैसी सभी सुविधाएं युरोपियन तकनीक वाली थी। इसके अलावा यह पहला ऐसा स्टूडियो बना जहाँ फिल्म सम्बन्धी तकनीकी शिक्षा भी दी जाने लगी।


राजनारायण दूबे के अथक परिश्रम, लगन और समर्पण के बाद ‘द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ में उनकी योजना के अनुसार प्रति वर्ष कम से कम १० फिल्मों का निर्माण शुरू हुआ। उन्होंने सात विभाग बनाए थे। ‘द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़‘ में निर्माण कार्य होता था। ‘बॉम्बे टॉकीज़ लेबरोटॅरीज़‘ में शूटिंग खत्म होने के बाद पोस्ट प्रोडक्शन हुआ करता था। ‘बॉम्बे टॉकीज़ पिक्चर्स‘ फिल्मों को वितरक के रूप में रिलीज़ किया करता था। फिल्म संगीत के काम पर ‘बॉम्बे टॉकीज़ घराना’ की विशेष दृष्टि हुआ करती थी। प्रचार के लिए ‘बॉम्बे टॉकीज़ साहित्य समिति’ बनाई गई थी। वित्तीय लेन देन और नैतिक जवाबदारी ‘दूबे इंडस्ट्रीज़‘ एवं ‘दूबे कम्पनी’ की हुआ करती थी और ‘द बॉम्बे टॉकीज़ लिमिटेड‘ सारे कामों का मैनेजमेंट देखा करता था। ठीक वैसे ही जैसे आज के दौर में एग्जिक्यूटिव प्रोडयूसर हुआ करते हैं। ‘बॉम्बे टॉकीज़‘ की फिल्मों का म्यूज़िक भले ही कमीशन के आधार पर एच. एम. वी. रिलीज़ किया करता था पर उसका नियन्त्रण और देखभाल ‘बॉम्बे टॉकीज़ घराना‘ के कुछ ख़ास सदस्यों के मार्फ़त होता था। ज्ञात हो कि एच. एम. वी. म्यूज़िक कम्पनी को भारत में स्थापित करने में ‘बॉम्बे टॉकीज़‘ का ही महत्वपूर्ण योगदान था। मूक फिल्मों के दौर के बाद जब बोलती फिल्मों का दौर शुरू हुआ, तब भारत में कोई भी अनुभवी और मज़बूत कम्पनी नहीं थी, कलकत्ता में कुछ छोटी-मोटी कम्पनियाँ काम कर रही थी, जो मात्र औपचारिकता ही थी। एच. एम. वी. म्यूज़िक कम्पनी को भारत में स्थापित करने का श्रेय राजनारायण दूबे एवं ‘बाम्बे टॉकीज़ घराना’ को ही जाता है।

ree
Joymoti Konwari (1935) - Bombay Talkies

राजनारायण दूबे ने विभिन्न भाषाओं में भी लोगों को फिल्म बनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने ज्योति प्रसाद अग्रवाल को अपना सहयोग देकर भारतीय सिनेमा की पहली असमिया भाषा में फिल्म बनाई जिसका नाम था ‘जॉयमोती’, जो कि सुपर डुपर हिट रही। १९५३ में ‘द बॉम्बे टॉकीज़ लिमिटेड’ के मैनेजमेंट के आपसी कलह की वजह से असमय बन्द हो जाने और मामला कोर्ट के अधीन हो जाने का दुःख राजनारायण दूबे को हमेशा सालता रहा। जब भी ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की चर्चा चलती, वह भावुक हो उठते, उनकी आँखें नम हो जाती थी। ‘बॉम्बे टॉकीज़’ बन्द हो जाने के बाद भी उनके पास कई सिनेमा हस्तियों का आना-जाना लगा रहता था। वी. शान्ताराम, पी. एल. सन्तोषी, देविका रानी, राज कपूर, अशोक कुमार, शोभना समर्थ, भालजी पेंढ़ारकर, एल. वी. प्रसाद, नितिन बोस जैसी हस्तियाँ हमेशा उनसे मिलने आया करती थी।

ree
Pioneer Discoveries of Bombay Talkies

राजनारायण दूबे से पहली मुलाक़ात मेरे मित्र एवं वरिष्ठ पत्रकार इसाक मुज़ावर के माध्यम से हुई थी। उसके बाद उनसे मिलना जारी रहा, अक्सर देखा कि डॉ. राही मासूम रज़ा, कमलेश्वर, साहिर लुधियानवी, अमृता प्रीतम, महावीर धर्माधिकारी और कवि प्रदीप जैसे सम्मानित लोग उनसे मिलने आते रहते थे। १९८० में एक कार दुर्घटना के दौरान

जब राजनारायण दूबे गम्भीर रूप से घायल हो गए थे, उस दौरान जब भी उनसे मिलने ‘बॉम्बे अस्पताल’ गया तब वहां अपने जमाने की मशहूर कलाकार निरूपा राय, लीला मिश्रा, और फिल्मकार महेश भट्ट के पिता नानाभाई भट्ट के साथ अशोक कुमार को उनके पास बैठा पाया, जो उनका कुशल-क्षेम जानने के साथ ही, उनसे ‘द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ को छोड़ कर जाने और असमय बन्द हो जाने के लिए अपने आप को क़सूरवार मान रहे थे।

ree
Pioneer Discoveries of Bombay Talkies
ree
ree
ree
ree

नवम्बर १९९० के आख़िर में राजनारायण दूबे शारीरिक रूप से अस्वस्थ थे। वह बेहद कमज़ोर हो चले थे। 9 दिसम्बर १९९० को भारतीय सिनेमा जगत को अनेकों कलाकार देने वाले, ‘बॉम्बे टॉकीज़ घराना‘ के प्रेरणास्रोत एवं भारतीय सिनेमा जगत के पहले अत्याधुनिक स्टूडियो ‘द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़’ के इस महान निर्माता, सिनेमा के युगपुरुष और कला के मसीहा ने ‘बॉम्बे अस्पताल’ में अन्तिम सांस ली। ‘बॉम्बे टॉकिज़’ के विरासत को बचाये और बनाए रखने की उनकी इच्छा, सपने के रूप में हमेशा के लिये उनके साथ ही चली गयी।



 
 
 

コメント


bottom of page